गजल-दो-प्याजा हमने सूंघी है कहीं प्याज की महकती खुशबू हाथ से छू लो इन्हें पर लेने का नाम न लो सिर्फ एहसास रखो और रूह से महसूस करो प्याज का प्यार ही रहने दो, कोई दाम न दो प्याज का मोल नहीं प्याज कोई प्यार नहीं एक झटका सा है जो धीरे से लगा करता है न ये रुकता है न झुकता न घटता है कभी इसका दाम जो है वो दिन रात बढ़ा करता है सिर्फ एहसास रखो और रूह से महसूस करो प्याज का प्यार ही रहने दो, कोई दाम न दो मुस्कराहट खिलती है दुकानदार के मुंह पर खरीदार की जेबें तो दिन रात लुटा करती हैं होंठ कुछ कहते नहीं कांपते होठों पर मगर किस्सा-ए-प्याज ही इक बात हुआ करती है सिर्फ एहसास रखो और रूह से महसूस करो प्याज का प्यार ही रहने दो, कोई दाम न दो
Monday, 24 August 2015
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