Monday, 24 August 2015

हमने सूंघी है कहीं प्याज की महकती खुशबू

गजल-दो-प्याजा    हमने सूंघी है कहीं प्याज की महकती खुशबू  हाथ से छू लो इन्हें पर लेने का नाम न लो  सिर्फ एहसास रखो और रूह से महसूस करो  प्याज का प्यार ही रहने दो, कोई दाम न दो  प्याज का मोल नहीं प्याज कोई प्यार नहीं  एक झटका सा है जो धीरे से लगा करता है  न ये रुकता है न झुकता न घटता है कभी  इसका दाम जो है वो दिन रात बढ़ा करता है  सिर्फ एहसास रखो और रूह से महसूस करो  प्याज का प्यार ही रहने दो, कोई दाम न दो  मुस्कराहट खिलती है दुकानदार के मुंह पर  खरीदार की जेबें तो दिन रात लुटा करती हैं  होंठ कुछ कहते नहीं कांपते होठों पर मगर  किस्सा-ए-प्याज ही इक बात हुआ करती है  सिर्फ एहसास रखो और रूह से महसूस करो  प्याज का प्यार ही रहने दो, कोई दाम न दो 

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